म्हारा हिवडा री,
खिल गई कली रे कली,
घरे म्हारे आया नारायण हरी,
हुँ तो उबी रहि ने देख्या रे करी,
सपना में आया के अईग्या खरी,
घरे म्हारे आया नारायण हरि।।
बाहर उबाउ के भीतर लेजाऊ,
भीतर ले जाऊ तो काय रे बिछाऊ,
ऑख्या से फूटी धार रे पड़ी,
घरे म्हारे आया नारायण हरि।।
बाहर ऊबाऊ तो उबी सुख जाऊ,
घर में ले जाऊ तो लाजा मर जाऊ,
हाय रे विधाता आई केसी या घड़ी,
घरे म्हारे आया नारायण हरि।।
घर में ले जाऊ तो काई रे खिलाऊ,
हरि जी को मिनवार काई से कराऊ,
भांजी भी तो आलुरी चुल्हे चड़ी,
घरे म्हारे आया नारायण हरि।।
ना तो तेल हे ना घरे घी,
म्हारा तो हरि जी ने भुंख लगी,
गरीबी तो म्हारा बाँथे पड़ी,
घरे म्हारे आया नारायण हरि।।
भाजी तो हरि जी ने थाले धरी,
बखाणी बखाणी ने खावे रे हरि,
हूँ तो पूछ भी ना पाई के कैसी रे बणी,
घरे म्हारे आया नारायण हरि।।
आठ आठ पटराणी नौरा करे रे,
तरे तरे का थाल धरे रे,
ऊबी ऊबी सगली तो देख्या रे करी,
घरे म्हारे आया नारायण हरि।।
भक्ता रो शीश उठायों रे ऊँचो,
हरि से भी भक्ता रो दर्जो ऊचों,
थे तो कंकर ने शंकर बणाया हरि,
घरे म्हारे आया नारायण हरि।।
साधन होता हाथा से बणाती,
हरि जी ने अपना हाथा से जिमाती,
भाग म्हारा लिखता कलम हरि,
घरे म्हारे आया नारायण हरि।।
म्हारा हिवडा री,
खिल गई कली रे कली,
घरे म्हारे आया नारायण हरी,
हुँ तो उबी रहि ने देख्या रे करी,
सपना में आया के अईग्या खरी,
घरे म्हारे आया नारायण हरि।।
रचनाकार – श्री सुभाष चन्द्र त्रिवेदी।
अपलोड – आशुतोष त्रिवेदी
7869697758