अवगुण बहुत किया,
गुरु साहेब मैंने,
अवगुण बहोत किया।
दोहा – निगुरा नर तो मति मिलो,
पापी मिलो हजार,
एक निगुरे रे शीश पर,
लख पापियों रो भार।
गुरु गोविंद दोन्यूं खड़े,
मैं किसके लागू पाय,
बलिहारी गुरु आपने,
जो गोविंद दियो मिलाय।
ये तन विष की बेलड़ी,
गुरु अमृत की खाण,
शीश दिए जो सतगुरु मिले,
तो भी सस्ता जाण।
अवगुण बहुत किया,
गुरु साहेब मैंने,
अवगुण बहोत किया।।
नव दस मास गुरुजी,
रिया मैं गर्भ में हाँ,
माता को कष्ट दिया,
गुरु साहेब मैंने,
अवगुण बहोत किया।।
जितरा तो पैर गुरुजी,
धारिया मैं धरण पे हाँ,
पग पग पाप किया,
गुरु साहेब मैंने,
अवगुण बहोत किया।।
जितरी तिरिया गुरुजी,
देखी मैं नजर से हाँ,
मंछा पाप किया,
गुरु साहेब मैंने,
अवगुण बहोत किया।।
पाप कपट की गुरुजी,
बाँधी मैं गठरियाँ हाँ,
सिर पर बोझ लिया,
गुरु साहेब मैंने,
अवगुण बहोत किया।।
धर्मीदास शरणे,
कबीर सा रे,
बेड़ा पार किया,
गुरु साहेब मैंने,
अवगुण बहोत किया।।
अवगुण बहोत किया,
गुरु साहेब मैंने,
अवगुण बहोत किया।।
स्वर – सुनीता जी स्वामी।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052